जब डूबने वाली थी देश की इकोनॉमी, मनमोहन सिंह ने संभाली देश की कमान और बदल दी भारत की तस्वीर

बेशक आज भारत दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी इकोनॉमी बन चुका है। मगर एक दौर ऐसा भी था, जब भारत की अर्थव्यवस्था लगभग खत्म चुकी थी। भारत केवल दो हफ्तों के खर्च और उम्मीदों पर टिका था। अंतराष्ट्रीय बैंकों ने भी भारत को और कर्ज देने से मना कर दिया था। इस संकट की घड़ी में डॉ मनमोहन सिंह ने वित्त मंत्री का पद संभाला और देश पर मंडरा रहे आर्थिक संकटों के बादलों से देश को बचाया।

मनमोहन सिंह बने भारत के संकटमोचन

सन 1985 से ही देश की आर्थिक स्थिति डगमगाने लगी थी। सरकार के पास आय के बहुत कम स्रोत थे। जबकि खर्च अधिक हो रहा था। 1990 के शुरुआत तक आते-आते देश पर आर्थिक संकटों के बादले छाने लगे। देश का विदेशी मुद्रा भंडारण लगभग खत्म होने के कगार पर था और सरकार के पास मात्र दो सप्ताह का ही खर्च बचा था। ऐसी स्थिति में डॉ मनमोहन सिंह उम्मीद की एक किरण बनकर आए और देश को तरक्की की राह दिखाई।

मनमोहन सिंह ने संभाली देश की कमान

मनमोहन सिंह ने तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव की अगवाई वाली सरकार में वित्त मंत्री का पद संभालते हुए सबसे पहले उदारीकरण, वैश्वीकरण और निजीकरण की दिशा में काम किया।

उदारीकरण : व्यापार पर सरकारी नियंत्रणों को कम करके निजी क्षेत्र को बढ़ावा दिया। जिससे लोगों ने व्यापार की ओर कदम बढ़ाए और देश को आंतरिक रूप से आर्थिक मजबूती मिली। 

वैश्वीकरण: विदेशी निवेश को बढ़ावा दिया। जिससे विदेशी कंपनियां भी भारत में अपने व्यापार का प्रसार करने लगी। जिससे रोजगार मिलने के साथ-साथ सरकार को टैक्स के रूप में मोटी आय होने लगी।

निजीकरण / लाइसेंस राज का अंत : मनमोहन सिंह के दिशा निर्देशों को अपनाते हुए सरकार ने शराब, सिगरेट, विस्फोटक सामग्री, दवाइयां और रसायन आदि को छोड़ सभी क्षेत्रों में व्यवसाय करने के लिए लाइसेंस की जरूरत खत्म कर दी. इसके बाद लोगों को अपना व्यापार शुरू करने के लिए ज्यादा कानूनी और कागजी कार्यवाही से राहत मिली।

कॉरपोरेट टैक्स में बदलाव: पहले कॉरपोरेट क्षेत्र में भारी भरकम टैक्स लगाया जाता था। जिसे मनमोहन सिंह के आने के बाद कम किया गया और टैक्स भुगतान प्रक्रिया को सरल किया गया। जिससे देश की आमदनी में तगड़ा इजाफा हुआ।

इस तरह डॉ मनमोहन सिंह की दूरदर्शिता और नेतृत्व ने भारतीय अर्थव्यवस्था को मजबूती दी। उनके सुधारो के परिणाम स्वरुप ही भारत की जीडीपी में वृद्धि हुई और देश को एक मजबूत आर्थिक आधार मिला।

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