मीनाक्षी जोशी vs प्रियंका भारती: अमित शाह के अंबेडकर बयान के बाद शुरू हुआ मनुस्मृति पर दंगल

राष्ट्रीय जनता दल की प्रवक्ता प्रियंका भारती ने इंडिया टीवी के लाइव डिबेट में मनुस्मृति पुस्तक को फाड़ते हुए उस पर विवादास्पद टिप्पणी की। जिसका वीडियो उन्होंने अपने ट्वीटर (X) अकाउंट पर भी शेयर किया है। इसके बाद सोशल मीडिया में उनके खिलाफ भीड़ को उकसाने का आरोप लगाया जा रहा है और उनको शारीरिक उत्पीड़न करने की धमकियां मिलने लगी है।

इंडिया टीवी के एक एंकर ने भी प्रियंका भारती पर विवादास्पद टिप्पणी की है। इसके बाद यह मामला मीनाक्षी जोशी vs प्रियंका भारती के रूप में तब्दील हो रहा है। आइये जानते हैं क्या है पूरा मामला।

मीनाक्षी जोशी vs प्रियंका भारती

प्रियंका भारती ने 18 दिसंबर को डिबेट के दौरान मनुस्मृति की प्रतिलिपियों को फाड़ते हुए 2 मिनट का वीडियो क्लिप शेयर किया था। इसके बाद सोशल मीडिया पर हंगामा शुरू हो गया। प्रियंका भारती ने मनु स्मृति को महिला विरोधी पुस्तक बताते हुए उसे फाड़ा और जलाया है।

इस मामले के तार केंद्रीय मंत्री अमित शाह के भीमराव अंबेडकर वाले विवादास्पद बयान से भी जुड़े हैं। संसद की इस बहस के दौरान इंडिया टीवी की एक एंकर मीनाक्षी जोशी संसद में होस्ट कर रही थी। मीनाक्षी जोशी ने प्रियंका भारती के 2 मिनट के वीडियो क्लिप को अपने एक्स हैंडल अकाउंट पर दोबारा कैप्शन लिखते हुए साझा किया है।

मीनाक्षी जोशी कैप्शन में दोबारा लिखती है कि “अंबेडकर जैसा व्यक्ति भिक्षु अंबेडकर हो जाए, तो किसी हिंदू को सूतक नहीं लगने वाला। जिस देश में बुद्ध जैसा महान इंसान भी हार गया। वहां अंबेडकर किस झाड़ की पत्ती है। सावरकर… इसी सावरकर से प्रेरित होकर अमित शाह ने अंबेडकर का अपमान करने की हिम्मत की है। 

इसके बाद एक यूजर ने मीनाक्षी जोशी के ट्वीट को दोबारा साझा करते हुए कहा है कि कोई चलती डिबेट में हिंदू ग्रंथ के पन्ने फाड़े तो किसी भी स्वाभिमानी हिंदू को उनके वहीं कनपटी पर जड़ देना चाहिए था। दो-चार बार ऐसा होगा तो लोग अपने आप समझ जाएंगे। जाहिर है इसमें यह यूजर प्रियंका भारती के खिलाफ लोगों को उकसाने का काम कर रहा है। ताकि हिन्दू धर्म ग्रंथ के खिलाफ ऐसा करने वाले लोगों के साथ हिंसात्मक व्यवहार किया जाए।

मनुस्मृति पुस्तक का विरोध क्यों किया जाता है?

उल्लेखनीय है कि 25 दिसंबर 1927 को भीमराव अंबेडकर ने मनु की मनुस्मृति पुस्तक का सार्वजनिक दहन किया था। इसके बाद से ही भीमराव अंबेडकर के समर्थक इस पुस्तक का बहिष्कार और विरोध करते आए हैं। इसके लिए मनुस्मृति दहन दिवस भी मनाया जाता है।

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