द केरला स्टोरी फिल्म एक बार फिर सुर्खियों में है, इस बार वजह है फिल्म को मिला राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार। फिल्म को सर्वश्रेष्ठ निर्देशन और सिनेमैटोग्राफी के लिए नेशनल फिल्म अवार्ड से नवाजा गया था, लेकिन अब विवादों का सिलसिला भी शुरू हो गया है। सोशल मीडिया से लेकर फिल्मी स्कूलों और संस्थानों तक आलोचनाओं की बाढ़ आ गई है। कुछ लोगों ने इसे एक पक्षपाती फिल्म बताया है तो किसी ने इसकी कहानी को काल्पनिक बताने की कोशिश की है। चलिए जानते हैं क्या है पूरा मामला।
द केरला स्टोरी पर मचा बवाल
द केरला स्टोरी फिल्म को मिले राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार पर विवाद शुरू हो गया है। फिल्म फेयर मैगजीन के संपादक जितेश पिल्लई ने इस फिल्म को मिले पुरस्कार की खुलकर आलोचना की है। वह कहते हैं कि फिल्म के जरिए समाज को बांटने का काम किया गया है। सरकार ने इसे अवार्ड देकर देश में गलत संदेश दिया है। इसके अलावा जितेश पिल्लई ने फिल्म की सिनेमाई गुणवत्ता पर भी प्रश्न चिन्ह लगाया है। इतना ही नहीं पुणे स्थित FTII के छात्र संगठन भी इस फिल्म को मुस्लिम विरोधी और बहुसंख्यक वादी प्रोपेगेंडा बता रहे हैं।
तमाम तरह के बयानों और विरोध के बावजूद यह याद रखना भी जरूरी है कि किसी भी फिल्म को राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार एक स्वतंत्र जूरी के तहत दिया जाता है। जहां किसी भी तरह का पक्षपात नहीं किया जाता।
फिल्म को बताया काल्पनिक और मुस्लिम विरोधी
फिल्म के खिलाफ बोलने वाले छात्र संगठनों का कहना है कि द केरला स्टोरी फिल्म झूठ और नफरत फैलाने का काम कर रही है। फिल्म की कहानी पूरी तरह से झूठी है। असल में ऐसा कुछ नहीं हुआ। आलोचकों ने इसे इस्लामोफोबिया बताया है। दावा किया है कि यह फिल्म देश के सांप्रदायिक एकता को नुकसान पहुंचाने का काम कर रही है। हालांकि केरल में हुए धर्मांतरण और लव जिहाद की घटनाओं में बची लड़कियों ने खुलकर बताया है कि उनके साथ है क्या हुआ कैसे हुआ और कैसे उन्होंने अपने आप को सुरक्षित भारत पहुंचा।












