Water Crisis in India: बेंगलुरु और दिल्ली के बाद अब किसकी बारी? जानिए 2030 तक किन शहरों में बूंद-बूंद को तरसेंगे लोग।

By: महेश चौधरी

Last Update: December 23, 2025 7:44 AM

Water Crisis in India
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Water Crisis in India: सोचिए, आप सुबह उठते हैं और रोजाना की तरह ब्रश करने जाते हैं। नल खोलते हैं… लेकिन पानी नहीं आता। एक बार फिर नल घुमाते हैं, फिर भी सन्नाटा। अब पानी की बूंद नहीं बल्कि आपके पसीने की बूंद टपकती है। न पीने के लिए पानी, न खाना बनाने के लिए। यह किसी फिल्म की कहानी नहीं बल्कि भारत के कई बड़े शहरों की आज की डराने वाली हकीकत है। पानी जिसे हमेशा ही फ्री और अनलिमिटेड मानते आए हैं, अब वह धीरे-धीरे सबसे कीमती बनता जा रहा है।

नीति आयोग और वर्ल्ड बैंक जैसी संस्थाएं पहले ही पानी की किल्लत को लेकर चेतावनी दे चुकी हैं। अगर हालात ऐसे ही रहे तो 2030 तक भारत के कई बड़े शहर पानी की कमी से जूझते नजर आएंगे। मगर… सवाल सिर्फ इतना नहीं है कि पानी क्यों खत्म हो रहा है? बल्कि सवाल है यह भी है कि अगली बारी किस शहर की है? कहीं अगला नंबर आपके शहर का तो नहीं…..? पढ़िए khabardaari.com की आज की रिपोर्ट. 

ये 5 शहर हैं सबसे ज्यादा खतरे में

बेंगलुरु: बेंगलुरु को कभी झीलों का शहर कहा जाता था। पहले यहां स्थानीय झीलों और खुले जल स्रोतों से पानी की पूरी आपूर्ति हो जाती थी। मगर समय के साथ यह झीलें सूख गई या पूरी तरह से बर्बाद हो गई। आज बेंगलुरु की आधी से ज्यादा आबादी कावेरी नदी और हजारों बोरवेल्स पर निर्भर है। 

आईटी सेक्टर के तेजी से विस्तार, माइग्रेशन और हाई राइज अपार्टमेंट ने यहां पानी की मांग को कई गुना बढ़ा दिया। जिसका असर बेशक अमीर स्तर के लोगों पर कम दिखता है, मगर झुग्गी बस्तियों और लो-इनकम इलाकों में लोग पानी की बूंद बूंद के लिए तरसते नजर आना आम बात हो गई है। जो आने वाले समय में और भी गहरे जल संकट का संकेत दे रही है।

दिल्ली: दिल्ली में देश की 17% आबादी निवास करती है और राजनीति का केंद्र बिंदु भी दिल्ली ही है। मगर देश की धड़कन दिल्ली अब धीरे-धीरे पानी के संकट में डूबती जा रही है। पहले तो दिल्ली में पानी यमुना नदी और आसपास के भूजल स्रोतों से आता था, लेकिन आज यमुना का पानी प्रदूषण का प्रतीक बन चुका है और दिल्ली दूर-दराज़ के बांधों और टैंकरों पर निर्भर है। 

जनसंख्या विस्फोट, अनियोजित कालोनियां और लीक सिस्टम ने पानी की मांग काफी बढ़ा दी है। गिरता भूजल स्तर दिल्ली के लिए चिंताजनक है। नीति आयोग की रिपोर्ट के मुताबिक दिल्ली में हर साल 2 से 4 मीटर तक भूजल स्तर गिर रहा है। जिसके मुताबिक 2030 तक आधी से ज्यादा दिल्ली सूख जाएगी। टोटियां केवल दीवारों की शोभा बढ़ाएंगी और पानी की जगह चिंता टपकेगी।

चेन्नई: देश का सबसे बड़ा शहर चेन्नई भी पानी की किल्लत का सामना कर रहा है। यहां पहले मानसून और झीलों से जलापूर्ति हो जाती थी। मगर अब यह स्रोत पूरी तरह से बर्बाद हो चुके हैं। बढ़ती आबादी ने पानी का संकट और बढ़ा दिया है। यहां के लोग अब समुद्री पानी को मीठा करके प्लांट्स पर निर्भर हो चुके हैं। 

हैदराबाद: कुछ साल पहले तक हैदराबाद पानी के लिए हुसैन सागर और आसपास के तालाबों पर निर्भर था। मगर अब दूर की नदियों और गहराते बोरवेल्स से पानी खींच रहा है। आईटी हब बनने की होंड, बढ़ती आबादी और कमर्शियल मांग ने हैदराबाद का पानी भी सूखा दिया। आने वाले समय में हैदराबाद पानी की बूंद बूंद के लिए तरसता नजर आ सकता है।

जयपुर: गुलाबी नगर भी पानी के संकट से कुछ कदम दूर है। जयपुर पीने के पानी के लिए बीसलपुर बांध, नदियों और तालाबों पर निर्भर है। मगर गिरते भूजल स्तर ने पानी की किल्लत बढ़ा दी है। साथ ही साथ बढ़ती पर्यटकों की संख्या, आबादी और कम बारिश की स्थिति में हालात और ज्यादा बिगाड़ दिए। जिसका सबसे ज्यादा असर आर्थिक कमजोर वर्ग के लोगों पर देखने को मिल रहा है। 

क्यों खत्म हो रहा है पीने का पानी 

पीने के पानी की कमी का कारण सिर्फ जनसंख्या वृद्धि नहीं है, बल्कि असली समस्या गलत प्लानिंग है। नीति आयोग की रिपोर्ट बताती है कि भारत का 70% से भी ज्यादा पानी प्रदूषित हो चुका है। लोग नदी-तालाबों में नहाने और कपड़े धोने के साथ-साथ कचरा भी डाल देते हैं। जिसके चलते वह पानी पीने लायक नहीं रहता। इसके साथ ही फैक्ट्री से निकला केमिकल भी पीने के पानी को जहरीला बना देता है। 

भविष्य में जैसे-जैसे आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस तकनीकी भारत में पैर पसारेगी पानी की किल्लत और ज्यादा बढ़ेगी। क्योंकि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के डेटा सेंटर को ठंडा रखने के लिए भारी मात्रा में पानी इस्तेमाल किया जाता है। यानी आने वाले समय में पानी की खपत और ज्यादा बढ़ने वाली है।

क्या हम बच सकते हैं?

इसका जवाब सीधे तौर पर हाँ में दिया जा सकता है। लेकिन पूरा काम सरकार पर छोड़ देना काफी नहीं होगा। समाधान हमारे घरों से शुरू होता है। रेनवाटर हार्वेस्टिंग को अपनाने की सलाह देना गलत नहीं होगा। पानी की बचत करना ही पानी का उत्पादन है। नदी तालाबों के पानी को गंदा नहीं करना है, साथ ही फैक्ट्री से निकला केमिकल युक्त पानी सीधे पीने के पानी में नहीं छोड़ा जाए। अगर समय रहते पानी की बचत करने के लिए ठोस कदम नहीं उठाए गए तो 2030 में हर दूसरा आदमी यही पूछेगा आज पानी (नल) आएगा या नहीं।