India–Russia Deals Explained: रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी के बीच 23rd India–Russia Annual Summit 2025 की वार्ता ने भारत और रूस के रिश्तों को एक नया आर्थिक आयाम दिया है। इस सबमिट में भारत और रूस ने ऊर्जा, व्यापार, लॉजिस्टिक, उर्वरक, तकनीकी और चिकित्सा जैसे कई क्षेत्रों में अपना दायरा बढ़ाया है। जो न सिर्फ द्विपक्षीय लेनदेन को बल्कि अंतरराष्ट्रीय आपूर्ति श्रृंखला को भी प्रभावित करेगा। भारत और रूस के यह नए व्यापारिक समझौते। अमेरिका के लिए परेशानी का कारण बन सकते हैं। चलिए जानते हैं भारत और रूस के नए व्यापारिक समझौते से अंतरराष्ट्रीय व्यापार पर क्या असर पड़ेगा और यह किस तरह अमेरिका को प्रभावित कर सकता है।
रूस और भारत के बीच व्यापार का दायरा बढ़ेगा
भारत और रूस तेल हथियार और विमान से बढ़कर भी कई तरह के व्यापारिक समझौते कर रहे हैं। जो दोनों देशों की आर्थिक स्थिति को मजबूत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे। वित्त वर्ष 2024 से 2025 में भारत और रूस के बीच द्विपक्षीय व्यापार लगभग 68.7 बिलियन तक पहुंच गया था। जिसमें भारत ने रूस को करीब 4.88 4 बिलियन का एक्सपोर्ट किया और रूस से भारत में इंपोर्ट 63.84 बिलियन तक रहा। जिसमें मुख्य रूप से तेल गैस और उर्वरक शामिल थे।
अब इस साल की सबमिट में दोनों देशों ने अपने व्यापारिक कदम और मजबूती से बढ़ाए हैं। जिसमें 2030 तक दोनों देशों के बीच व्यापार 100 बिलियन डॉलर तक लेकर जाने का लक्ष्य रखा है। हालांकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संकेत दिए हैं कि यह लक्ष्य 2030 से पहले ही पूरा कर लिया जाएगा।
शेयर मार्केट और निवेश के नए विकल्प
हाल ही में हुए रूस और भारत के बीच के समझौता से निवेशकों की भी मुस्कान लौटी है। अब कच्चे माल ऊर्जा उर्वरक आदि की आपूर्ति में स्थिरता आ सकती है। साथ ही उत्पादन लागत भी नियंत्रित की जा सकेगी। जिससे भारत में इंडस्ट्रियल कंपनियों पर दबाव कम होगा और उनकी प्रॉफिटेबिलिटी (मुनाफा) बेहतर हो सकेगी। जो सीधे रूप से शेयर बाजार को चढ़ाने का काम करती है।
भारत और रूस के बीच की सप्लाई चैन अगर लंबे समय तक बेहतर तरीके से काम करती है तो रक्षा ऊर्जा उर्वरक टेक और लॉजिस्टिक जैसे क्षेत्रों की कंपनियां काफी अच्छा रिटर्न देगी।
दोनों देशों ने रुपया और रूबल को लेनदेन प्रणाली में इस्तेमाल करने पर सहमति जताई है। जिससे भारत और रूस की अमेरिकी डॉलर से निर्भरता कम होगी और स्वदेशी मुद्रा को मजबूती मिलेगी।
ग्लोबल मार्केट पर असर
भारत और रूस के द्विपक्षीय समझौते अंतरराष्ट्रीय बाजार को सीधे रूप से प्रभावित करेंगे। दोनों देशों द्वारा रुपया और रूबल का इस्तेमाल करने से डॉलर आधारित व्यापार में एक नया मोड़ आ सकता है। जिससे न केवल लेनदेन की लागत घटेगी बल्कि पश्चिमी देशों के वित्तीय दबाव और प्रतिबंधों का असर भी कम हो सकता है। दूसरा बड़ा प्रभाव ऊर्जा और कच्चे माल की आपूर्ति श्रृंखला पर पड़ेगा। जिसके लिए ज्यादातर देश मुख्य रूप से रूस पर निर्भर है।
रूस-भारत समझौतों ने दिया अमेरिका को सरदर्द
रूस और भारत के मजबूत होते समझौता ने अमेरिका को सिर दर्द दिया है। जो भारत पहले अमेरिका से व्यापारिक संबंध बनाए हुए था। वह धीरे-धीरे रूस के साथ स्थानांतरित हो रहे हैं। जिससे अमेरिका को भारी आर्थिक नुकसान का सामना करना पड़ रहा है। साथ ही साथ डॉलर का इस्तेमाल कम से कम करने को प्राथमिकता दी जा रही है। इसके चलते अंतरराष्ट्रीय बाजार में डॉलर के इस्तेमाल में भी कमी आ सकती है। जो अमेरिका को झटका देगा।












