Secular Civil Code क्या है? जल्द हो सकता है देश में लागू

देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लाल किले की प्राचीर से एक बार फिर Secular Civil Code की मांग उठाई है। सेकुलर सिविल कोड देश के सभी नागरिक को एक समान अधिकार दिलाने की कोशिश हैं। संविधान के अनुच्छेद 44 में सभी नागरिकों को समान नागरिक संहिता का अधिकार दिया गया है। मगर आज भी देश में धर्म और मजहब के आधार पर कानून और अधिकारों में भिन्नता दिखने को मिलती है। शादी, तलाक, गोद लेना, शादी की उम्र और अन्य को कई प्रकार के निजी अधिकारों में भिन्नता मौजूद है। जिन्हें एक समान करने के लिए ही नरेंद्र मोदीजी ने एक बार फिर मांग उठाई है।

Secular Civil Code क्या है?

संविधान के अनुच्छेद 44 के तहत सभी नागरिकों को एक जैसा अधिकार प्राप्त है। मगर इसमें संशोधन की आवश्यकता है। जिसे सेकुलर सिविल कोड के नाम से संबोधित किया जा रहा है। भारत में आज भी धर्म के हिसाब से पर्सनल लोन में शादी, शादी की कम से कम उम्र, तलाक एवम् तलाक के बाद गुजारा भत्ता और उत्तराधिकारियों के नियमों में भिन्नता मौजूद है। यानी धर्म के आधार पर भेदभाव हो रहा है। जबकि संविधान के मुताबिक देश के प्रत्येक नागरिक के पास समान अधिकार होनी चाहिए।

Secular Civil Code लागू होगा तो क्या होगा?

अनुच्छेद 44 में संशोधन के बाद सेकुलर सिविल कोड भारत में पूर्ण रुप से लागू किया जा सकता है। जिसके बाद भारत के प्रत्येक नागरिक के पास एक समान अधिकार होंगे। चाहे वह हिंदू, मुस्लिम, क्रिश्चियन या इसाई किसी भी धर्म से तालुकात रखता हो। वर्तमान में मुस्लिम महिलाओं की शादी के लिए अलग विशेष अधिकार है। जबकि हिंदू महिलाओं के लिए अलग। मुस्लिम धर्म के लोगों को अलग से पर्सनल लॉ दिया गया है। जो अनुच्छेद 44 का हनन करता है।

धर्म के आधार पर विभिन्नता

कानून के मुताबिक लड़की की शादी की उम्र 18 वर्ष और लड़के की आयु 21 वर्ष निर्धारित की गई है। जबकि इस्लाम में शरीयत एक्ट के मुताबिक लड़की की शादी की आयु उसके मासिक धर्म की शुरुआत के साथ ही मानी गई है। इसके अलावा तलाक और भरण पोषण और बच्चे के संरक्षण के लिए भी हिंदू और मुस्लिम पर्सनल लॉ में बड़ा अंतर है। दूसरी और ईसाई धर्म में भी भिन्नता देखने को मिलती है। जिसमें समानता लाना आवश्यक हो गया है।

तीन तलाक पर रोक

कुछ समय पहले ही भारत में तीन तलाक को अवैध घोषित किया जा चुका है। इसके बाद तलाक की प्रक्रिया हिंदू-मुस्लिम और सभी धर्मों में एक समान कर दी गई है। इससे पहले मुस्लिम व्यक्ति अपनी पत्नी को सिर्फ तीन बार तलाक शब्द बोलकर उसे तलाक दे सकता था। मगर अब उसे कानूनी प्रक्रिया से गुजर कर ही तलाक लेना होगा।

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