शीतकालीन कोहरा यानी ठंडी केवल हमारी दिनचर्या को ही नहीं बल्कि, हवाई जहाज की उड़ानों को भी प्रभावित करती है। इसी को समझने के लिए साल 2015 में एक खास एक्सपेरिमेंट शुरू किया गया था। जिसे ‘विंटर फॉग एक्सपेरिमेंट’ (WiFEX) नाम दिया गया। इसे अब 10 साल पूरे हो चुके हैं। चलिए जानते हैं इन 10 सालों में विंटर फॉग एक्सपेरिमेंट कहां तक पहुंचा और कैसे इस रिसर्च ने दिल्ली की तस्वीर बदलने में भूमिका निभाई।
कैसे शुरू हुआ WiFEX?
WiFEX की शुरुआत साल 2015 में नई दिल्ली के इंदिरा गांधी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे से हुई थी। जो उस समय देश का कोहरे से सबसे ज्यादा प्रभावित वाला एयरपोर्ट था। इस प्रोजेक्ट को IITM (भारतीय उष्णकटिबंधीय मौसम विज्ञान संस्थान) के सहयोग से संचालित किया गया था। जिसका उद्देश्य कोहरे की वजह से हो रही फ्लाइट की देरी और सुरक्षा पर पड़ रहे असर को समझना और उसे कम करना था। शुरुआत में तो सिर्फ पर एक जगह का डाटा इकट्ठा किया गया था। लेकिन आज यह प्रोजेक्ट नोएडा (जेवर एयरपोर्ट) और हरियाणा के हिसार तक इस्तेमाल फैल चुका है।
WiFEX से कोहरे की सटीक भविष्यवाणी
पिछले 10 सालों की गहन रिसर्च से देश को एक खास उपलब्धि हासिल हुई है। अब एक हाईटेक फॉग प्रेडिक्शन मॉडल तैयार कर लिया गया है, जो 85% सटीकता के साथ बता सकता है कि कोहरा कब कितना और कितनी देर रहेगा। इस मॉडल में माइक्रोमीटरोलॉजी टावर, सोनोमीटर और एडवांस सेंसर लगाए गए हैं। जो हवा, नमी, तापमान और मिट्टी की गर्मी आदि से डाटा एकत्रित करके अनुमान लगाते हैं। जिसका सबसे बड़ा फायदा पायलटों और एयरलाइन यात्रियों को मिला है।
WiFEX के और भी कई फायदे अब साफ नजर आने लगे हैं। इसके जरिए एयर क्वालिटी मैनेजमेंट सिस्टम को भी बेहतर बनाया जा सकता है। दिल्ली हमेशा ही सबसे ज्यादा एयर पॉल्यूशन वाला राज्य रहा है। ऐसे में दिल्ली की वायु को साफ करने और क्वालिटी बेहतर करने में भी यह प्रोजेक्ट काफी महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।