BJP की जातिगत राजनीति से आने वाले समय में सामान्य वर्ग का होगा बुरा हाल, यहाँ पढ़ें पूरी खबर!

By: महेश चौधरी

On: Sunday, May 4, 2025 10:24 AM

Caste Census by bjp
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30 अप्रैल 2025 को मोदी सरकार ने आगामी राष्ट्रीय जनगणना में जाति आधारित जनगणना करने का फैसला किया है। सरकार के इस फैसले से कई लोग आश्चर्यचकित है। और कई नेताओं ने इसका खुलकर विरोध भी किया है। बीजेपी की जातिगत जनगणना और जातिगत राजनीति के कारण आने वाले समय में सामान्य वर्ग का बुरा हाल हो सकता है। सामान्य वर्ग को योजनाओं से लेकर सरकारी और प्राइवेट नौकरियां के लिए भी संघर्ष करता नजर आएगा।

बीजेपी की जातिगत राजनीति

बीजेपी द्वारा देश में जातिगत जनगणना करने के फैसले के बाद से इस पर तरह-तरह के तर्क दिए जा रहे हैं। बीजेपी जानती है कि देश का हिंदू अपने धर्म से पहले अपनी जाति के आधार पर पक्षपात करेगा। लोग जाति और आरक्षण के नाम पर लड़ेंगे। जो पार्टी के लिए वोट बैंक का काम करेगा। दूसरी और सीएम योगी आदित्यनाथ मंच से कहते हैं की बंटेंगे तो कटेंगे. मगर यूपी के डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य ने जातिगत जनगणना का पूरी तरह से समर्थन किया है। बीजेपी की जातिगत जनगणना और जातिगत राजनीति सीधे रूप से देश के सामान्य वर्ग का हाल बेहाल करने वाली है। चलिए जानते हैं किस तरह बीजेपी की जातिगत राजनीति सामान्य वर्ग को पीछे धकेलने का काम करेगी।

जातिगत राजनीति से सामान्य वर्ग का होगा बुरा हाल 

देश में सबसे पहले जाति आधारित जनगणना 1931 में अंग्रेजी हुकूमत में हुई थी। क्योंकि अंग्रेजों का मानना था कि भारत पर लंबे समय तक राज करने के लिए यहां के लोगों को जातियों में बांटकर उनकी एकता को तोड़ना सबसे जरूरी है। इस वक्त दलित वर्ग को सहारा देने के लिए कई कानून बनाए गए थे। ओर दलित वर्ग को हिंदुओं से अलग मानने पर भी जोर दिया गया। जिसका महात्मा गांधी ने जमकर विरोध किया।

इसके बाद साल 1990 में मंडल कमीशन लागू हुआ था। जिसके तहत OBC वर्ग को शिक्षण संस्थानों और सरकारी नौकरियों में 27% का आरक्षण दिया गया। मगर इसे भी कोर्ट में और ज्यादा बढ़ाने की मांग की गई। इसके बाद कोर्ट ने केप लगाई कि आरक्षण अधिकतम 50% तक ही दे सकते हैं। आसान भाषा में समझे तो यदि 100 पदों पर वेकेंसी निकली है तो सामान्य वर्ग केवल 50 पदों के लिए ही आवेदन कर सकता है। बाकी की 50 सीटें एससी, एसटी और ओबीसी के लिए आरक्षित होगी।

मगर 1994 में तमिलनाडु में जय ललिता की सरकार ने इस 50% के आरक्षण कैप को बढ़ाकर 69% कर दिया। जिससे सामान्य वर्ग के लिए और ज्यादा मुश्किलें बढ़ गई। इस 69% आरक्षण को 9th शेड्यूल में शामिल किया गया। जिसके कारण अब सुप्रीम कोर्ट भी इसमें संशोधन नहीं कर सकती।

तमिलनाडु को देखते हुए महाराष्ट्र में भी मराठा लोगों ने आरक्षण की मांग उठाई और इसे 68% किया। हालांकि यह कोर्ट में लंबित है। इसके साथ ही बिहार में भी नीतीश कुमार की सरकार ने 50% से बढ़कर 75% करने की कोशिश की। और यह मामला भी कोर्ट में लंबित है।

जिस तरह से देश में समय के साथ ओबीसी एससी और एसटी को आरक्षण मिल रहा है। उसे देखते हुए अनुमान जताया जा सकता है कि भविष्य में यह 50% का आरक्षण बढ़कर 60, 70 और 75% तक हो सकता है। यदि ऐसा होता है तो सामान्य वर्ग को इसका सबसे ज्यादा नुकसान होगा। उन्हें सरकारी नौकरियां योजनाओं और यहां तक कि प्राइवेट सेक्टर की नौकरियों के लिए भी संघर्ष करना पड़ सकता है।

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