PK Rosy Life Story: कौन हैं भारत की पहली दलित महिला अभिनेत्री, क्यों बदलनी पड़ी थी अपनी पहचान?

By: महेश चौधरी

On: Monday, April 7, 2025 2:46 PM

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PK Rosy Life Story: बेशक महिलाएं आज फिल्म इंडस्ट्री की एक मजबूत कड़ी के रूप में देखीं जाती हैं। मगर शुरुआत में किसी महिला का फिल्म में काम करना बहुत मुश्किल था और अगर वह महिला दलित समाज से हो तो यह नामुमकिन सा लगता था। समाज की बंदिशों को तोड़ते हुए साल 1928 में पीके रोजी ने देश की पहली मलयालम फिल्म विगतकुमारन (मूक) में नायिका की भूमिका निभाई। मगर इससे उनकी जिंदगी पूरी तरह उथल-पुथल हो गई। उन्होंने अपनी मूल पहचान खो दी और एक नए नाम नई पहचान के साथ अपना जीवन जीना पड़ा।

कौन हैं पीके रोजी

पीके रोजी का जन्म 1900 के शुरुआत में तिरुवंतपुरम के पुलया समुदाय (अछूत समुदाय) में हुआ था. रोजी की मां घास काटकर अपना जीवन व्यापन करती थी। रोजी का बचपन भी अपनी मां के कामकाजों को सीखने और हाथ बटाने में बीत गया। मगर उनका झुकाव कक्कारासी नाटक (एक लोकनाट्य शैली) की ओर था. रोजी देश की पहली महिला भी है। जिसने कक्कारासी नाटक में अभिनय कर अपनी पहचान बनाई। यहां से वह फिल्म निर्माता डेनियल की नजरों में आ गई। जो अपनी पहली मलयालम फिल्म विगतकुमार के लिए एक अभिनेत्री खोज रहे थे।

पीके रोजी ने विगतकुमार फिल्म में अभिनेत्री की भूमिका तो बखूबी निभाई। मगर उसे पर्दे पर देख उच्च वर्ग के लोग आग बबूला हो गए। और पीके रोजी के घर पर दावा बोल दिया। पीके रोजी अपनी जान बचाकर पड़ोसी केशव पिल्लई के साथ ट्रक में छुप कर भाग निकलने में कामयाब हुई।

नया नाम नई पहचान के साथ जिया जीवन

अपने मूल निवास स्थान को छोड़कर रोजी तमिलनाडु भाग आई। यहां उसने केशवम पिल्लई के साथ शादी करके एक नए जीवन की शुरुआत की। अभी पीके रोजी जिसका असली नाम राजम्मा था उसने अपना नाम बदलकर उच्च जाति के नाम रजम्मल कर लिया। और अपनी बाकी की जिंदगी उच्च जाति की महिलाओं के साथ बताई। 

पीके रोजी की मृत्यु कब हुई (P.K. Rosy Death Reason)

हालांकि पीके रोजी की मौत की तारीख को लेकर तरह-तरह के दावे है। मगर माना जाता है कि उनकी मृत्यु 1980 के दशक में हुई थी और उनके सहयोगी डेनियल जो एक समृद्ध और धनी व्यक्ति वह करते थे। लेकिन उनकी लगातार फिल्म विफलताओं ने उन्हें आर्थिक रूप से बर्बाद कर दिया था। डेनियल ने 1975 में दुनिया को अलविदा कहा था 

प्रसिद्ध इतिहासकार और पत्रकार चेलंगाट्ट गोपालकृष्णन ने उनके योगदान की सराहना करते हुए उन्हें मलयालम सिनेमा के पिता के रूप में प्रसिद्धि दिलाई। 

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