रविन्द्र सिंह भाटी एक बार फिर चर्चा में हैं। उन्होंने विधानसभा के शीतकालीन सत्र के दौरान सरकार को जिस तरह युवाओं के रोजगार और पश्चिमी राजस्थान के पानी के मुद्दों पर घेरा है, उसने एक बार फिर साबित कर दिया है कि सत्ता के गलियारों में निर्दलीय होकर भी अपनी आवाज बुलंद कैसे की जाती है।
बात चाहे रोजगार की हो, छात्र हित की या फिर अरावली हिल्स की भाटी ने हर बार सबसे आगे रहकर मोर्चा संभाला हैं। वे केवल बाड़मेर-जैसलमेर तक की सीमित नहीं हैं, बल्कि पूरे राजस्थान में एक नए यूथ आइकॉन के रूप में अपनी जड़े जमा चुके हैं। मात्र 26 साल की उम्र में उन्हें भारतीय राजनीति का राइजिंग स्टार का टैग मिल चुका है। आइए जानते हैं रविन्द्र सिंह भाटी कौन है? और वे राजनीति में इतना क्यों छाए हुए हैं।
जेएनवीयू के चुनाव से बदली रविन्द्र सिंह भाटी की किस्मत
रविन्द्र सिंह भाटी की राजनीति की कहानी की शुरुआत जयनारायण व्यास यूनिवर्सिटी से होती है। यहीं से उन्होंने अपनी राजनीतिक यात्रा शुरू की। वे युवाओं के बीच काफी लोकप्रिय हैं। उन्हें उम्मीद थी कि अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (ABVU) उन्हें अपना प्रत्याशी बनाएगी। लेकिन ऐन वक्त पर उनका टिकट कट गया। कोई मामूली छात्र नेता होता तो शायद हार मान लेता। लेकिन रविंद्र सिंह भाटी जीतने के लिए ही बने हैं।
उन्होंने निर्दलीय पक्ष खड़ा किया और अकेले ही राजनीति के मैदान में कूद पड़े। जब परिणाम आया तो हर कोई हैरान रह गया। भाटी की जीत ने साबित कर दिया कि जनता ही जनार्दन है। अगर वह साथ है तो एक नेता को और क्या ही चाहिए। उन्होंने JNVU के 57 साल के इतिहास में पहली बार स्वतंत्र छात्र संघ अध्यक्ष के रूप में जीत हासिल की थी। और 2019 से 2022 तक अध्यक्ष पद संभाला।
छात्र नेता से शिव विधानसभा के विधायक बनने का सफर
रविन्द्र सिंह भाटी राजनीति के खेल में लंबी रेस के लिए कमर कस चुके थे। मगर छात्र राजनीति से निकलकर मुख्यधारा की राजनीति में आना इतना भी आसान नहीं था। साल 2023 में उन्होंने विधानसभा चुनाव से ठीक पहले भारतीय जनता पार्टी का दामन थामा। उनके समर्थकों को भी लगा कि रविसा (रविन्द्र सिंह भाटी) बीजेपी के साथ मैदान में उतरेंगे। लेकिन यहां भी पाशा पलट गया।
बीजेपी ने उन्हें टिकट नहीं दिया। एक बार फिर रविंद्र सिंह भाटी अकेले पड़ गए। मगर उन्होंने कहा – मेरा टिकट किसी पार्टी ने नहीं, मेरी जनता ने फाइनल किया है और एक बार फिर उन्होंने अकेले ही शिव विधानसभा सीट के लिए “केतली” चुनाव चिन्ह के साथ हजारों युवाओं की फौज खड़ी थी और परिणाम वही हुआ जो जेएनवीयू में हुआ था। वे 6 लाख वोटों से जीते थे। जनता ने पार्टियों को नकार दिया और रविंद्र सिंह भाटी को चुना। रविंद्र की इस जीत ने राजनीति में एक नई हलचल खड़ी कर दी।
सोशल मीडिया बना रविंद्र सिंह भाटी का सबसे बड़ा हथियार
जहां दूसरी पार्टियां सोशल मीडिया को केवल प्रचार का माध्यम मानती हैं, वही रविंद्र सिंह भाटी ने सोशल मीडिया को अपना सबसे मजबूत स्तंभ बनाया है। वे फेसबुक, इंस्टाग्राम और दूसरे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के जरिए न केवल अपने कामकाज का प्रचार करते हैं, बल्कि डायरेक्ट युवाओं से संवाद भी करते हैं। लाइव आकर जरूरतमंदों की समस्या सुनते और समाधान निकालते हैं। उनके इंस्टाग्राम पर करीब 3 मिलियन और फेसबुक पर 13.8 लाख फॉलोअर्स हैं। उनसे जुड़े ज्यादातर लोग युवा हैं। उन्हें युवाओं का सबसे बड़ा सहयोग मिला है। युवा शक्ति भाटी का दूसरा सबसे मजबूत स्तंभ है।
लोकसभा चुनाव 2024: हार के बावजूद कैसे बने बाजीगर?
लोकसभा चुनाव 2024 में रविंद्र सिंह भाटी को बाड़मेर-जैसलमेर में कांग्रेस प्रत्याशी उम्मेदाराम बेनीवाल ने 1 लाख 18 हजार 176 वोटों के अंतर से हराया था। इस चुनाव में रविंद्र सिंह भाटी को कुल 5 लाख 86 हजार 500 वोट मिले थे। बेशक रविंद्र सिंह भाटी की यह चुनावी हार थी। मगर उन्होंने मोदी सरकार में कृषि राज्य मंत्री कैलाश चौधरी को पीछे छोड़ दिया था। भाटी सबसे ज्यादा मत लेने वाले दूसरे प्रत्याशी थे। उन्होंने निर्दलीय होने के बावजूद करीब 6 लाख लोगों का भरोसा जीत लिया था। हार के बाद उन्होंने कहा कि मैंने लोकसभा चुनाव लड़ा, लेकिन हारकर भी मैंने लोगों का दिल जीता है। उनका यह बयान बताता है कि वह कितने सकारात्मक हैं।
राजस्थान की राजनीति में तीसरा मोर्चा या भविष्य का बड़ा चेहरा?
रविन्द्र सिंह भाटी के राजनीतिक सफर और सफलता ने बड़े-बड़े राजनेताओं के पसीने छुड़ा दिए हैं। अब एक सवाल जोर पकड़ रहा है… क्या भाटी राजस्थान की राजनीति में तीसरे मोर्चे का चेहरा बन सकते हैं? या फिर वे किसी बड़े राजनीतिक समीकरण का हिस्सा होंगे? आने वाले विधानसभा चुनाव में भी उनकी भूमिका निर्णायक मानी जा रही है। उनकी स्वतंत्र छवि उनकी सबसे बड़ी ताकत है।
निष्कर्ष: रविंद्र सिंह भाटी सिर्फ एक युवा नेता नहीं बल्कि राजस्थान की राजनीति का एक नया चेहरा है। आज के हालात को देखकर इतना तो तय है — भाटी को नजरअंदाज करना अब किसी भी सियासी दल के लिए इतना आसान नहीं रहा क्या वे सच में राजस्थान के नए जन नायक होंगे? यह तो आने वाला वक्त ही बताया। बाकी इस पर आपकी क्या राय है? कमेंट सेक्शन में जरूर बताएं।












