CJI चंद्रचूड़ ने कहा है कि सुप्रीम कोर्ट ने अजीज बाशा केस को लेकर 1967 के फैसले को खारिज किया है। क्योंकि कोर्ट का कहना है कि कोई भी संस्था अपना अल्पसंख्यक दर्जा सिर्फ इसलिए नहीं खो सकती। क्योंकि इस संस्था का गठन किसी कानून के जरिए किया गया है। साथ ही कोर्ट ने आदेश जारी किया है कि इस बात की जांच की जाए कि एएमयू की स्थापना किसने की है? और इसके पीछे क्या योजना थी? आईए जानते हैं AMU अल्पसंख्यक को लेकर हो रहा यह पूरा मामला क्या है।
47 साल बाद बदला फैसला
शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट ने अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (AMU) के अल्पसंख्यक दर्जे पर फैसला किया है। और AMU को अल्पसंख्यक दर्जे के हकदार के रूप में स्वीकारा है। इसके साथ ही 1967 में सुप्रीम कोर्ट द्वारा सुनाए गए फैसले को भी खारिज कर दिया गया है। 1967 में सुप्रीम कोर्ट ने AMU को लेकर फैसला किया था कि वह अल्प शिक्षण संस्थान का दावा नहीं कर सकती। उसे भी अन्य संस्थाओं की तरह समान अधिकार है। मगर अब फैसले को खारिज कर दिया गया है।
यह फैसला सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक बेंच द्वारा किया गया है। जिसमें कुल 7 जज बैठे थे। 7 जजो में से 4 जजों ने पक्ष में फैसला सुनाया है। जबकि 3 जजों ने विपक्ष में फैसला किया है। 3 जाजो के फैसले को रेगुलर बेंच के पास स्थानांतरित किया गया है। जहां इस बात की जांच की जाएगी कि AMU की स्थापना अल्पसंख्यकों द्वारा की गई है या नहीं।
अनुच्छेद 30 के तहत कर सकता है AMU दावा
CJI ने कोर्ट का फैसला सुनाते हुए कहा कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा अज़ीज़ बाशा केस में 1967 में सुनाए गए फैसले को खारिज करते हुए AMU को अल्पसंख्यक दर्जा मिलने का फैसला सुनाया है। सुप्रीम कोर्ट का मानना है कि कोई भी संस्था अल्पसंख्यक दर्जे के अधिकार को सिर्फ इसलिए नहीं खो सकती। क्योंकि इसका निर्माण कानून के तहत किया गया है। सुप्रीम कोर्ट ने जांच करने के आदेश दिया हैं कि विश्वविद्यालय की स्थापना किसने की है और इसके पीछे उसका क्या उद्देश्य था। इसकी जांच की जानी चाहिए। यदि यह पाया जाता है कि एएमयू की स्थापना अल्पसंख्यक समुदाय द्वारा ही की गई है, तो संस्था अनुच्छेद 30 के तहत अल्पसंख्यक दर्जे का दावा करने का अधिकार रखती है।
1967 के फैसले को खारिज करने के बाद 1981 का संशोधन भी अमान्य कर दिया गया है।
अन्य यूनिवर्सिटीज का क्या होगा
3 जजों की रेगुलर बेंच को सर्वोच्च अदालत में स्थानांतरित किया गया है। जहां इस बात का निर्धारण किया जाएगा कि एएमयू अल्पसंख्यक दर्जे के लिए सभी मापदंडों को पूरा करती है अथवा नहीं। यदि AMU को अल्पसंख्यकों का दर्जा अंतिम रूप से मिल जाता है। तो यह अन्य यूनिवर्सिटीज के लिए भी एक बेंचमार्क जजमेंट साबित होने वाला है।
AMU राष्ट्र निर्माण के लिए समर्पित
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद एएमयू के PRO उमर सलीम पीरजादा ने एक सामूहिक मीडिया इंटरव्यू में कहा है कि हम AMU पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले का पूरी तरह से समर्थन करते है। AMU शैक्षणिक गतिविधियों, समावेशिका को बनाए रखने और राष्ट्र निर्माण के लिए समर्पित है। दूसरी ओर नईमा खातून ने भी सुप्रीम कोर्ट के फैसले का समर्थन करते हुए कहा है कि हम अगली कार्रवाई के लिए हमारे कानूनी विशेषज्ञों के साथ चर्चा कर रहे हैं।
क्या है अजीज बाशा केस
20 मई 1965 को पहली बार अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय को लेकर अल्पसंख्यक दर्जे पर विवाद शुरू हुआ। इसके बाद 1965 में केंद्र सरकार द्वारा AMU एक्ट में दोबारा संशोधन किया गया। जिसे AMU की स्वायत्तता को खत्म कर दिया गया। मगर इसके विरोध में एएमयू ने अजीज बाशा के सुप्रीम कोर्ट में फिर चुनौती दी। जो अब तक चलता आ रहा है।
1972 में इंदिरा गांधी के सरकार में भी AMU को अल्पसंख्यक संस्थान का दर्जा नहीं मिला। इसके बाद 1981 में संशोधन अधिनियम पारित किया गया। और AMU को अल्पसंख्यक दर्जा मिला। मगर 2006 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने दुबारा AMU अल्पसंख्यक संस्था न होने का फैसला सुनाया।