Mahakumbh Mela 2025 : अयोध्या के ज्योतिषाचार्य ने बताया कुम्भ मेले का रहस्य, कैसी हुई थी इसकी शुरुआत, जानें सामान्य कुम्भ और महाकुम्भ में क्या है अंतर?

महाकुंभ मेले का सनातन धर्म और संस्कृति में विशेष स्थान है। जो प्रत्येक 12 साल के अंतराल में एक बार लगता है। हालांकि हर 3 साल में एक बार कुंभ का मेला लगता है, मगर महाकुंभ मेला इससे थोड़ा अलग और विशेष मान्यता रखता है। वर्तमान में पूरा उत्तर प्रदेश Mahakumbh Mela 2025 की तैयारी में जुटा है। जो 13 जनवरी से शुरू से 26 जनवरी 2025 को 45 दिनों तक आयोजित किया जाएगा। इस दौरान देश दुनिया से लगभग 40 करोड़ से भी ज्यादा श्रद्धालु आने की संभावना है। आइए जानते हैं महाकुंभ और सामान्य कुंभ मेले में क्या अंतर है? साथ ही जानेंगे किन स्थितियों के आधार पर महाकुंभ मेले की तिथि निकाली जाती है।

कुम्भ मेला क्यों लगता है | कैसे हुई कुंभ मेले की शुरुआत 

अयोध्या के ज्योतिष पंडित कल्कि राम बताते हैं कि महाकुंभ मेले का संबंध पौराणिक कथा समुद्र मंथन से जुड़ा है। असुर और देवताओं ने मिलकर समुद्र मंथन किया। जिससे अमृत का कलश प्राप्त हुआ। कथाओं के मुताबिक इस अमृत कलश से अमृत की बूंदे 12 जगहों पर गिरी थी। पृथ्वी के चार स्थान प्रयागराज, नासिक, हरिद्वार और उज्जैन भी ऐसे स्थान है। जहां अमृत की बूंदे गिरी थी। तब से ही इन दिव्य स्थानों पर कुंभ का मेला लगना शुरू हुआ। शास्त्रों में प्रयागराज को तीर्थराज अथवा तीर्थ स्थलों का राजा भी कहकर पुकारा गया है। ऐसी भी मान्यता है कि ब्रह्मा जी द्वारा किया गया पहला यज्ञ भी यही किया गया था। 

महाभारत सहित कई धार्मिक ग्रंथो में भी प्रयागराज को सबसे पवित्र स्थल के रूप में अंकित किया गया है। देवताओं और असुरों के बीच लगातार 12 दिनों तक अमृता हासिल करने के लिए जबरदस्त युद्ध हुआ था। ये 12 दिन पृथ्वी के 12 वर्षों के समान है। इसलिए यहां 12 वर्षों के अंतराल में महाकुंभ का मेला लगता है।

कब कहां लगता है कुम्भ मेला?

ज्योतिष शास्त्रों के मुताबिक जब बृहस्पति ग्रह वृषभ राशि में और सूर्य देव मकर राशि में हो तो कुंभ मेला प्रयागराज में लगेगा। गुरु बृहस्पति, कुंभ राशि में और सूर्य देव मेष राशि में गोचर करते हैं तो कुंभ मेला हरिद्वार में आयोजित किया जाता है। बृहस्पति और सूर्य देव दोनों ही सिंह राशि में हो तो कुंभ नासिक में लगता है। चौथी स्थित बृहस्पति, सिंह राशि में और सूर्य मेष राशि में हो तो कुंभ मेला उज्जैन में लगेगा।

महाकुम्भ और कुम्भ में क्या अंतर है

कुंभ का मेला प्रत्येक 3 साल के अंतराल में बारी-बारी से प्रयागराज, उज्जैन, हरिद्वार और नासिक में आयोजित किया जाता है। जबकि अर्ध कुंभ प्रत्येक दो कुंभ मेला के बाद यानी 6 साल के बाद हरिद्वार और प्रयागराज के तट पर आयोजित होता है। वही पूर्ण कुंभ मेले की बात करें तो यह मेला 12 सालों में एक बार प्रयागराज में आयोजित किया जाता है। आखरी बार महाकुंभ यानी पूर्ण कुंभ मेला साल 2013 में आयोजित किया गया था।

शाही स्नान का विवेष महत्व | Mahakumbh Mela 2025 

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार कुंभ (महाकुंभ) मेले के दौरान पवित्र नदियों में स्नान करना काफी शुभ माना जाता है। नदियों के जल अमृत से स्नान करने श्रद्धालु दूर-दूर से आते हैं। प्रयागराज में कई नदियों गंगा, यमुना और सरस्वती का संगम स्थल है। जिसे विशेष धार्मिक महत्व दिया जाता है। लोगों की मान्यता है कि यह स्नान करने से जाने अनजाने में हुए पापों से मुक्ति और मोक्ष की प्राप्ति होती है।

Mahakumbh Mela 2025 में शाही स्नान तारीख 

  • पहला शाही स्नान – 13 जनवरी 2025 (पौष पूर्णिमा)
  • दूसरा शाही स्नान – 14 जनवरी 2025 (मकर संक्रांति)
  • तीसरा शाही स्नान – 29 जनवरी 2025 (मौनी अमावस्या)
  • चौथा शाही स्नान – 3 फरवरी 2025 (बसंत पंचमी)
  • पांचवा शाही स्नान – 12 फरवरी 2025 (माघ पूर्णिमा)
  • अंतिम शाही स्नान – 26 फरवरी 2025 (महाशिवरात्रि )
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