Ratan Tata Business Journey: जानें रतन टाटा के व्यावसायिक जीवन के संघर्ष की कहानी, मामूली वर्कर से देश के सबसे बढ़े उद्योगपति बनने का सफर

Ratan Tata Business Journey: 9 अक्टूबर 2024 को भारत के दिग्गज कारोबारी रतन टाटा जी ने दुनिया को अलविदा कह दिया है। रतन टाटा देश के सबसे बड़े उद्योगपतियों में से एक थे। जिन्होंने टाटा समूह को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया है। उनका नाम देश के सबसे बड़े कारोबारी के तौर पर गिना जाता है। मगर यह मुकाम हासिल करना इतना भी आसान नहीं था, जितना लगता है। आईए जानते हैं रतन टाटा ने अपने व्यावसायिक जीवन की शुरुआत कैसे की? और इस मुकाम पर पहुंचने के लिए उन्हें किन-किन मुश्किलों से गुजरना पड़ा था।

टाटा स्टील से की शुरुआत

साल 1962 में रतन टाटा आईबीएम कंपनी में नौकरी किया करते थे। मगर JRD टाटा के कहने पर रतन टाटा ने आईबीएम से नौकरी छोड़कर टाटा स्टील में नौकरी शुरू की। वे यहां से टाटा ग्रुप से जुड़े। और टाटा स्टील में काम करने के लिए वे जमशेदपुर पहुंचे। वहां उन्होंने अन्य ब्लू-कॉलर कर्मचारियों की तरह फर्श का काम शुरू किया। रतन टाटा यहां पर पत्थर-चुना की खुदाई और ब्लास्ट फर्नेस का काम किया करते थे।

टाटा स्टील में काम करते हुए रतन टाटा ने व्यवसाय के क्षेत्र की गहराइयों को समझा और अच्छा कौशल प्राप्त किया। इसके बाद इन्हें साल 1971 को नेल्को (नेशनल रेडियो एंड इलेक्ट्रॉनिक्स) कंपनी के प्रभारी के रूप में नियुक्ति मिली। हालांकि यह कंपनी सफल न हो पाई और आर्थिक मंदी के साथ-साथ यूनियन समस्याओं के कारण कंपनी को बंद करना पड़ा।

1971 से 1991 तक का व्यावसायिक सफर

इसके बाद 1980 के दशक में रतन टाटा को टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज (TCS) के विकास की जिम्मेदारी दी गई। जिसमें वे काफी हद तक सफल भी हुए। कंपनी भारत की सबसे बड़ी आईटी सेवा कंपनी के रूप में उभरकर सामने आई। इसके साथ ही कंपनी को सार्वजनिक भी किया गया। और टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज न्यूयॉर्क स्टॉक एक्सचेंज में लिस्ट हुई।इसके साथ ही 1991 तक रतन टाटा जी ने टाटा समूह की कई कंपनियां के विकास में योगदान दिया और एक मजबूत आधार के साथ कंपनियां को आगे बढ़ाया।

1991 में टाटा संस के अध्यक्ष बने

साल 1991 में रतन टाटा को व्यवसाय के क्षेत्र में काफी कुछ करने का अवसर मिला। सबसे पहले उन्हें टाटा मोटर्स का नेतृत्व सौंपा गया। जिसको रतन टाटा ने भारत की एक प्रमुख ऑटोमोबाइल निर्माता कंपनी के रूप में स्थापित किया। 

इसके बाद इसी साल रतन टाटा को टाटा संस के अध्यक्ष के तौर पर नियुक्ति मिली। जो टाटा ग्रुप की होल्डिंग कंपनी है। उनके नेतृत्व में टाटा ग्रुप में कई बड़ी कंपनियों का अधिग्रहण किया। और उन्होंने टाटा समूह के विस्तार में कोई कसर नहीं छोड़ी। अब टाटा ग्रुप भारत मे ही नहीं बल्कि विश्व स्तर पर भी एक बड़ा व्यवसायिक समूह के रूप में गिना जाने लगा है।

लगभग 21 सालों तक टाटा संस के अध्यक्ष पद पर काम करने के बाद उन्होंने साल 2012 में सेवानिवृत्ति ली। और टाटा ट्रस्ट के अध्यक्ष पद को संभाला।

बोर्ड सदस्य के रूप में संभाली कंपनियाँ

रतन टाटा ने कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय कम्पनियों में बोर्ड सदस्य के रूप में भी सेवाएं दी है। जिसमें अल्काटेल (फ़्रांस की एक प्रमुख दूरसंचार कंपनी), बोइंग (अमेरिकी विमान निर्माण कंपनी) और मित्सुबिशी कॉर्पोरेशन का नाम शामिल है। 

इन कंपनियों का किया अधिग्रहण

टाटा समूह का न सिर्फ देश में बल्कि पूरी दुनिया भर में विस्तार करने के लिए कई अन्तर्राष्ट्रीय कंपनियों का अधिग्रहण किया। जिसमें कुछ प्रसिद्ध कंपनियों की जानकारी नहीं दी गई है।

जगुआर लैंड रोवर:  टाटा मोटर्स ने फोर्ड मोटर कंपनी से जगुआर और लैंड रोवर ब्रांड का अधिग्रहण किया। जो उस समय का सबसे ज्यादा सुर्खियों में रहने वाला अधिग्रहण था।

कोरस स्टील: कनाडा की इस्पात कंपनी कोरस स्टील का टाटा स्टील में साल 2007 में अधिग्रहण किया। जो साल का सबसे बड़ा अधिग्रहण था। इसके अलावा टाटा स्टील ने दक्षिण अफ्रीका की इस्पात कंपनी न्यूकॉर का भी अधिग्रहण किया।

सबसे सस्ती कार लांच की

रतन टाटा ने साल 2008 में टाटा नैनो कार लॉन्च की। यह कार भारत की ही नहीं बल्कि दुनिया की सबसे सस्ती और छोटी कार थी। जिसके पीछे रतन टाटा का उद्देश्य हर एक व्यक्ति को खुद की कार का मालिक बनाना था। हालांकि यह कार बहुत ज्यादा सफल न हो सकी। और साल 2018 में इसका निर्माण बंद कर दिया गया। मगर यह कार टाटा समूह की एक नई और बेहतर शुरुआत थी।

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