साउथ सिनेमा के डायरेक्टर्स के आगे फीके पड़े बॉलीवुड के डायरेक्टर, जानें 5 सबसे बड़े कारण ।

साउथ इंडियन सिनेमा का दबदबा लगातार बढ़ता ही जा रहा है। जिसने पिछले एक दशक में भारत के साथ-साथ विदेशी स्तर पर भी अपनी मजबूत पकड़ बनाई है। चाहे फिर राजामौली की महाकाव्य फिल्में हो या फिर लोकेश कनगराज की अनोखी पटकथा की बात हो, साउथ के निर्देशों ने अपनी काम करने की शैली और प्रभावशाली कहानियों के साथ दर्शकों का दिल जीत लिया है। दूसरी ओर बॉलीवुड लगातार आलोचनाओं का सामना कर रहा है और साउथ सिनेमा की हिट फिल्मों के रीमेक बनाकर टिका है। आइए जानते हैं साउथ के निर्देश बॉलीवुड के निदेशकों से क्यों बेहतर माने जाते हैं।

कहानी की बजाय स्टार कास्ट को महत्त्व देना

बॉलीवुड डायरेक्टर हमेशा किसी भी फिल्म की कहानी को बेहतर बनाने के बजाय बड़े और चर्चित चेहरों को फिल्म में मुख्य भूमिका के रूप में कास्ट करते हैं। क्यों उन्हें लगता है कि चाहे फिल्म की कहानी कुछ भी हो बड़े कलाकारों के नाम से ही उनकी फिल्म चल जाएगी। जो आज के समय में काफी कम असरदार तकनीकी है। ऐसा करके एक, दो या कुछ सीमित फिल्मों को चलाया जा सकता है। मगर बार-बार एक ही कलाकार को देखकर जनता उब जाती है।

दूसरी और साउथ सिनेमा में हर दूसरी-तीसरी फिल्म में एक नए और कम चर्चित चेहरा देखने को मिलता है। जिससे दर्शकों को नया और ताजगी की अनुभव मिलता है।

जैसे कि, जब केजीएफ फिल्म तैयार की गई थी, तब साउथ सिनेमा में यश एक स्थापित कलाकार नहीं थे। मगर प्रशांत नील ने अपने अनोखे डायरेक्शन से न सिर्फ फिल्म को ब्लॉकबस्टर बनाया बल्कि फिल्म ने कई ऐसे अवार्ड भी अपने नाम किये जो बॉलीवुड के लिए भी बड़ा सपना है।

धर्म और संस्कृति को महत्व नहीं देना 

साउथ सिनेमा हमेशा अपनी जड़ों और परंपराओं से जुड़ी फिल्मों के लिए जाना गया है। जैसे मणिरत्नम की पोनियिन सेलवन में चोल साम्राज्य की गाथा को खूबसूरती से दिखाया गया है। दूसरी ओर साउथ सिनेमा की धार्मिक फिल्में भी अलग ही अनुभव देती है। जिनमें बारीक से बारीक चीजों का भी उनके महत्व के मुताबिक ख्याल रखा जाता है। 

मगर बॉलीवुड अपनी फिल्मों को वेस्टर्न कल्चर से प्रभावित होकर तैयार करता है। जिसके चलते फिल्में अपनी संस्कृति और धर्म की मूल पहचान को देती है। नतीजन कई बॉलीवुड फिल्मों का तो दर्शकों ने पूर्ण रूप से बॉयकॉट तक कर दिया। और इस दौरान साउथ सिनेमा को अपनी जड़ी मजबूत करने का एक बड़ा अवसर भी मिला।

नेपोटिज्म का दबदबा

बॉलीवुड हमेशा ही भाई-भतीजे वाद को लेकर आलोचनाओं का सामना करता रहा है। बॉलीवुड में किसी भी स्टार किड को फिल्में मिलना मामूली बात है। चाहे फिर दर्शकों को फिल्म में किसी प्रकार की गुणवत्ता मिले या ना मिले। सलमान खान की पिछले साल रिलीज हुई “किसी का भाई किसी की जान” फिल्म इसका एक उत्तम उदाहरण है। जिसने इतने बड़े स्टार की फिल्म को भी बॉक्स ऑफिस पर औंधे मुंह गिरा दिया।

दूसरी ओर साउथ सिनेमा के डायरेक्टर भाई-भतीजे बाद का कोई महत्व नहीं है। अगर कलाकार में टैलेंट है, तो उसे सफल होने से कोई नहीं रोक सकता। साउथ डायरेक्टर्स भी एक नए और टैलेंटेड चेहरे की तलाश में रहते हैं। जिससे साउथ सिनेमा की अलग ही पहचान बनी है।

क्वालिटी से ज्यादा क्वांटिटी बढ़ाना

बॉलीवुड डायरेक्टर ज्यादा से ज्यादा फिल्में रिलीज करना चाहते है। जिसके चलते फिल्मों में गुणवत्ता की कमी खटकती है। दूसरी और साउथ सिनेमा के डायरेक्टर्स साल की 1 फिल्म या फिर 1 ही फिल्म में कई साल लगाकर एक ऐसी मास्टरपीस फिल्म तैयार करते हैं। जो न सिर्फ बॉक्स ऑफिस पर रिकॉर्ड तोड़ कमाई करती है, बल्कि सालों तक दर्शकों द्वारा याद की जाती है। जिसका उत्तम उदाहरण RRR, केजीएफ फ्रेंचाइजी और पुष्पा फ्रेंचाइजी है। जिसने न केवल अंतरराष्ट्रीय स्तर पर दबदबा बनाया है, बल्कि कई नामचिन अवार्ड भी जीते हैं।

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