बिहार में विधानसभा चुनाव से पहले वोटिंग लिस्ट को लेकर जबरदस्त बवाल मच गया है। चुनाव आयोग ने स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (SIR) की प्रक्रिया शुरू कर दी है। जिसके तहत फर्जी और मृत लोगों का नाम वोटिंग लिस्ट से हटाया जा रहा है ताकि मतदान प्रक्रिया में पारदर्शिता बनी रहे। लेकिन विपक्षी दलों ने कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है कि इलेक्शन कमीशन वोटिंग लिस्ट में फेरबदल करने की कोशिश कर रहा है। जिसका उद्देश्य दलित, मुस्लिम और गरीब प्रवासी मतदाताओं मत अधिकार छीनना है।
क्या है SIR कैंपेन और क्यों मचा है बवाल?
इलेक्शन कमीशन ने SIR कैंपेन के तहत बूथ स्तर पर घर-घर जाकर वोटरों का डाटा/दस्तावेज इकट्ठा करने की प्रक्रिया 25 जून से शुरू की हुई है। 26 जुलाई तक के एनुमरेशन फॉर्म भरवा जा रहे हैं। इलेक्शन कमीशन का कहना है कि इस कदम का उद्देश्य योग्य वोटर्स को वोटिंग लिस्ट में रखना और फर्जी या अयोग्य वोटर को वोटिंग लिस्ट से हटाना हैं। लेकिन विपक्ष का आरोप है कि इससे करोड़ों वोटर्स बिना वजह लिस्ट से बाहर हो जाएंगे।
वोटिंग लिस्ट में नाम जुड़ावाने के लिए इन डॉक्यूमेंट्स की हो रही है मांग
जिन लोगों को वोटिंग लिस्ट से बाहर कर दिया गया है और उनको लगता है कि वह मतदान करने के योग्य हैं तो उनके लिए इलेक्शन कमीशन ने 11 डॉक्यूमेंट की सूची में जारी की है। इन 11 दस्तावेजों में से कोई भी एक दस्तावेज उपलब्ध कराने पर उनका नाम फिर से वोटिंग लिस्ट में जोड़ दिया जाएगा। इन दस्तावेजों में बर्थ सर्टिफिकेट, मैट्रिक सर्टिफिकेट, सरकारी पहचान पत्र, पासपोर्ट, जमीन की रजिस्ट्री आदि शामिल है। हालांकि इसमें आधार कार्ड, राशन कार्ड और मनरेगा जॉब कार्ड को शामिल नहीं किया गया है। क्योंकि इलेक्शन कमिशन ने का कहना है कि देश के बाहर से आए हुए रोहिंग्या और बांग्लादेशों ने फर्जी आधार कार्ड, राशन कार्ड और मनरेगा जॉब कार्ड बनवाए हुए हैं। इसलिए इन दस्तावेजों को अमान्य माना जाएगा।
राहुल गाँधी और विपक्षी पार्टियों ने कोर्ट को लगाई गुहार
SIR कैंपेन के खिलाप कांग्रेस समेत 9 विपक्षी दलों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर दी है। उनका कहना है कि यह प्रक्रिया संविधान के खिलाफ है और बिना पर्याप्त तैयारी के लागू की गई है। उनका दावा है कि बिहार के 65% ग्रामीणों के पास न तो जमीन है और न ही बर्थ सर्टिफिकेट। ऐसे में लगभग 2 करोड़ दलित, मुसलमान और प्रवासी वोट देने से वंचित रह सकते हैं। फ़िलहाल सुप्रीम कोर्ट ने इसपर कोई निर्णय नहीं लिया है, विपक्षी पार्टियों की निराशा बढ़ती जा रही है.